सोचता हु ये दुनिया को क्या हो गया,
कोय रो रहा हैं, कोय सर पिट रहा हैं
क्यों ये सरा जहां बदल सा गया,
सोचता हु ये दुनिया को क्या हो गया।
सब तरफ अफरा-तफ्री सी मची है,
कोय काम से परेशान है, कोय जगडो से,
क्यों ये सरा जहां बदल सा गया,
सोचता हु ये दुनिया को क्या हो गया।
किसी ने सच ही कहा है,
“जिंदगी जीओ, काटो मत”
क्यों ये सरा जहां बदल सा गया,
सोचता हु ये दुनिया को क्या हो गया।
जिंदगी के मज़े लो,
क्यों ये सब परेशानीयों मे फसे हो,
शांत रहो ताकी उपाय मिले,
क्यों ये सरा जहां बदल सा गया,
सोचता हु ये दुनिया को क्या हो गया।
सारा जहां तेरे अंदर छीपा है,
भगवान मूर्ति मे नही, तेरे अंदर छिपा है,
खुशियों को क्यों बाहर ढूंढता है
सारा जहां बदल सा गया,
सोचता हु दुनिया को क्या हो गया।
एक बात याद रख,
मुशकेलीयां तो आती रहेगी,
उसका सामना करना सीख,
हारने से क्यों डरता है,
क्यों ये सारा जहां बदल स गया
सोचता हु ये दुनिया को क्या हो गया।
सोचता हु ये दुनिया को क्या हो गया।
~©Utsav Shah